काली लैला

जगजीत सिंह जी की एक गजल है छड़यां दी जून बुरी जोकी कुंवारो की जिंदगी ब्यान करती है। यू-टयूब पर फिर से सुनने का मौका मिला। पर गजल के शुरु का शेर इतना कत्ल था कि यहाँ लिख रहा हूं। संगीत मय सुनने के लिए यूटयूब है ही। किसे वल ऑखिया मजनू नूं, ओए तेरी लैला दिसदी काली वे मजनू मुड़ जवाब दित्ता ओ तेरी अक्ख न वेखण वाली ए

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लोजी पाठक साहब जिन्होंने शुरुआती दौर में जेम्स हेडली चेज के नावलों का हिन्दी अनुवाद किया था अब पूरा सर्कल कर चुके हैं। उनके बहुचर्चित पैंसठ लाख की डकैती का अंग्रेजी संस्करण आया है। सुदर्शन पुरोहित जोकि सॉफ्टवेयर में काम करते हैं ने अंग्रेजी अनुवाद किया है। नाम है “Sixty Five Lakhs Heist” ज्यादा पढ़ने के लिए मिंट पर यहाँ पढ़ें। एक तरह से तो अच्छा है कि अब चैनई, हैदराबाद व त्रिची में बैठे मानस भी पाठक साहब के पढ़ पाएंगे। पर सोचता हूँ कि क्या अनुवाद पाठक जी की पंजाबी मिश्रित शैली का मुकाबला कर पाएगा अभी रमाकांत का कॉफी को विस्की का तड़का लगा कर पीना या फिर विमल का “तेरा भाणा मिठ्ठा लागे” गुरबाणी याद करना इत्यादि। वैसे अंग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है पर किसी की शैली को अनुवाद करना भी टेढा काम है। यदि कोई ब्लॉग बंधू अंग्रेजी अनुवाद पढ़े तो जरुर बताएं।

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सुबह जब बिस्तर से निकलने में मुश्किल हो, तो अपने आप से कहो “ मुझे एक आदमी की तरह, काम पर जाना है। यदि मैं वही करने जा रहा हूँ जिस के लिए मेरा जन्म हूआ है – और जिस के लिए मैं इस दुनिया में लाया गया था तो मैं कैसे शिकायत कर सकता हूँ ? या फिर मैं इसी के लिए जन्मा था ? कम्बल के नीचे घुस कर मस्ती से सोने के लिए ?

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हिन्दी चिट्ठों की दुनिया छोटी सी है। पिछले तीन-चार सालों में दसियों से हजारों चिट्ठों के सफर में पहली सीटों पर बैठने का भी मौका मिला। देबू के चिट्ठा विश्व से शुरु हुए सफर में नारद ने हिन्दी ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर में अपनी अलग जगह बनाई। पिछले कुछ महीनों में नए चिट्ठाजगत, ब्लॉगवाणी एग्रीगेटर आरंभ हुए व अब हिन्दी ब्लॉगपाठकों के पास नई प्रविष्टियाँ पढ़ने के लिए काफी उपाय हैं। विभिन्न एग्रीगेटरों के चलते गुणीजनों में यह विचार उठे थे कि इतने संकलकों की कोई जरुरत नहीं है। लेकिन यदि कल न्यूयार्क टाईम्स के पैसे देकर पढ़े जा सकने वाली सामग्री को फ्री करने के फैसले को देखें तो पाएंगे कि याहू, गूगल इत्यादि की तरह संकलक जरुरी हैं

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गेपिंग वोयड एक कलाकार व मशहूर ब्लॉगर हैं जो कि बिज़नेस कार्डस के पीछे कार्टून बनाते हैं। उनका नया कार्टून देखा भगवान न करे किसी को ऐसा दिन देखना पड़े

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लोजी अब पक्का हो गया। टीवी से भारत की ग्रामीण महिलाओं का बहुत विकास हो रहा है। अब यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एमिली ऑस्टर तो यही कहती हैं। उन्होंने एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है जिसका नतीजा यही है कि भारत में गाँवों में केबल टीवी लगने के बाद चाल-चलन व रवैये में काफी फर्क आया है औरते इस बात पर कम सहमत होती हैं कि औरतों के प्रति घरेलू झगड़े की मारपीट सही हैं वे अपनी अधिक स्वतंत्रता की बात करती हैं जैसे कि कहीं जाने से पहले किसी से पूछ कर जाना पहले बच्चा लड़का ही हो इस बात पर कम झुकाव दर्शाती हैं लड़कियों के स्कूलों में दाखिले में वृद्धि बच्चों की पैदाइश दर में कमी आप पूरा पेपर यहाँ से पढ़ सकते हैं। आप इस से कितने सहमत / असहमत हैं कमेंट द्वारा जरूर बतावें।

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आजकल लड़के लड़कियों को स्कूलों में यौन शिक्षा दी जानी चाहिए या नहीं पर बहस का बाजार गरम हो रहा है। सदैव मुस्कुराते शास्त्री जी ने पहले सर्व किया व नेशन-मास्टर के आंकड़ों को दिखाते हुए मत रखा कि देखिए इन पश्चिम वालों को पिछले 50 सालों से शिक्षा दे रहे हैं पर कुछ फायदा नहीं हुआ दिखता। उलटे ब्लात्कार व यौन संबंधित अपराध बड़े ही हैं। यानि की यौन शिक्षा का लंबे समय से चलता आ रहा प्रयोग असफल।

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पंकज नरूला

A Product Guy working in Cloud in particular SAP HANA Cloud Platform playing with Cloud Foundry + Subscription and Usage billing models

Product Management

San Francisco Bayarea