इंटरनेट पर हिन्दी में लिखने की शुरुआत कुछ धक्का-स्टार्ट कही जा सकती है। लिखने के लिए सॉफ्टवेयर नहीं था, ब्राउज़र ढंग से हिन्दी नहीं दिखाते थे। कॉफी जुगाड़ लगा कर लिखा जाता था। मैं बात कर रहा हूं २००२-०३ की। आलोक जी ९-२-११ वालों ने अपने देवनागरी.नेट से बहुत लोगों को नेट पर हिन्दी में लिखना सिखाया। पहले ब्राउज़रों ने हिन्दी ठीक से दिखानी शुरु की। फिर धीरे धीरे विंडोज़ में हिन्दी चलनी शुरु हो गई। आई एम ई का चलना, मंगल नामक फांट का आना बड़ी बातें थी।

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लोजी अब पक्का हो गया। टीवी से भारत की ग्रामीण महिलाओं का बहुत विकास हो रहा है। अब यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एमिली ऑस्टर तो यही कहती हैं। उन्होंने एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है जिसका नतीजा यही है कि भारत में गाँवों में केबल टीवी लगने के बाद चाल-चलन व रवैये में काफी फर्क आया है औरते इस बात पर कम सहमत होती हैं कि औरतों के प्रति घरेलू झगड़े की मारपीट सही हैं वे अपनी अधिक स्वतंत्रता की बात करती हैं जैसे कि कहीं जाने से पहले किसी से पूछ कर जाना पहले बच्चा लड़का ही हो इस बात पर कम झुकाव दर्शाती हैं लड़कियों के स्कूलों में दाखिले में वृद्धि बच्चों की पैदाइश दर में कमी आप पूरा पेपर यहाँ से पढ़ सकते हैं। आप इस से कितने सहमत / असहमत हैं कमेंट द्वारा जरूर बतावें।

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आजकल लड़के लड़कियों को स्कूलों में यौन शिक्षा दी जानी चाहिए या नहीं पर बहस का बाजार गरम हो रहा है। सदैव मुस्कुराते शास्त्री जी ने पहले सर्व किया व नेशन-मास्टर के आंकड़ों को दिखाते हुए मत रखा कि देखिए इन पश्चिम वालों को पिछले 50 सालों से शिक्षा दे रहे हैं पर कुछ फायदा नहीं हुआ दिखता। उलटे ब्लात्कार व यौन संबंधित अपराध बड़े ही हैं। यानि की यौन शिक्षा का लंबे समय से चलता आ रहा प्रयोग असफल।

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आलोक भाई अभी अभी अमरीका से हो कर गए हैं, शायद यहाँ से कुछ खास चीज खाकर गए हैं ( समीर जी व जीतू भाई अफसोस आलोक अपुन पियक्कड़ो जैसे नहीं हैं, नहीं तो लिखता खा-पीकर गए हैं)। इस लिए की जाते ही फटाक फटाक दो “बड़ी सी” प्रविष्टियां लिख डाली। बड़ी सी पर जोर इस लिए दे रहा हूँ कि आलोक अपनी कम लिखे को ज्यादा समझना – तार को खते समझना जैसी ब्लॉग पोस्टों के लिए बदनाम प्रसिद्ध हैं। खैर अगर ऐसी कोई बात है तो मैं आलोक से इस खाने वाली चीज के बारे में जरुर जानना चाहुंगा। श्रीमती जी कैमिस्ट्री की रिसर्च-स्नातक हैं उनसे कह कर इस चीज के अंदर के विटामिन निकलवाकर – बड़ी पोस्ट लिखने की गोली बना-बना कर बेचेंगे।

वैसे लिखना तो आलोक को पहले चाहिए था कि अमरीका उन्हें कैसा लगा। वैसा ही जैसा वे सोचते था या अलग। पर उन्होंने अपनी सोच की छिपकली सभी पर छोड़ दी अभी भाई लोग अनुगूंज में सोच सोच कर लिख रहे हैं। अब बड़े भाई ने कहा है तो लिखना तो पड़ेगा ही। तो लीजिए हमारी भी श्वेत-श्याम आहुति इस 22वीं अनुगूंज में।

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कुछ दिन पहले सौतन के बेटे (मेरा मोबाइल जिस पर ईमेल आती है) ने आलोक का कम-लिखे-को-ज्यादा समझने वाला संदेश दिया कि “भई हम आपके देश में है, समय मिले तो फोन कीजिएगा”। हमारी खुशी का ठिकाना नहीं कि चलिए आखिरकार आलोक से मिलना हो पाएगा। आलोक भाई ने अंतर्जाल पर हिन्दी का पहला जाल बिछाया था तो इस नजर से वे हैं हिन्दी के पहले स्पाइडर मैन साथ ही वे मेरे कॉलेज के सुपर सीनियर (जिनसे आप कॉलेज में न मिले हों) भी हैं इसलिए बाते भी करने को काफी होंगी।

फोन लगाया तो पता लगा कि वे सिलिकन वैली पधार रहे हैं व गूगल वालों से भी मिलेंगे। भई वाह हम पड़ोस में रहते हैं पर आजतक उन लोगों से हिन्दी के बारे में बात करने नहीं गए। आलोक भाई उनसे मिले भी व उनसे हिन्दी के बारे में चर्चा भी की। इस बारे में आगे लिखूंगा। वहाँ गूगल वालों ने क्या खिलाया यह तो वे स्वयं ही बताएंगे। खैर फोन पर तय हुआ कि हम लोग साथ साथ सैन होज़े से करीब 160 किलोमीटर दूर पोआंइट रियज़ नामक जगह पर जाएंगे। यह एक राष्ट्रीय पार्क है व वहां एक बहुत ही सुंदर लाइटहाउस भी है।

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लीजिए जनाब यदि आप अभी तक ऐप्पल के सफारी नामक ब्राउजर का उपयोग करना चाहते थे लेकिन ऐप्पल न होने की वजह से न कर पाए हों तो अब आप कर सकते हैं। आज यहाँ सुबह सैन फ्रांसिस्को में स्टीव जॉब्स ने सफारी ब्राउजर के विंडोज़ पर उपलब्ध होने की घोषणा की। आप इसे यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं। मैंने इस पर मिर्ची सेठ पर जाकर देखा व सरसरी तौर पर दो चीजें नोट की

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पिछले नौं साल से कम्पयूटर इंडस्टरी में काम कर रहा हूँ व उस से भी ज्यादा देर से इसके बारे में जानता हूँ। काफी बार यह प्रश्न दिमाग में आता है कि ये मार्किट कम्पयूटर ज्ञान को इतनी तवज्जो क्यों देती है? आज के दौर में एक साथ इतने सारे लोगों को बाकी लोगों से औसतन ज्यादा पैसे देने वाली इंडस्टरी शायद कम्पयूटर ही है। इस प्रश्न का जवाब यदि एक शब्द में देना हो तो वह है इनोवेशन या नवोत्पाद। अब यदि एक तरफ आप मारुति में मशीन के पास काम करने वाला वर्कर लें और दूसरी तरफ इंफोसिस में काम करने वाला वर्कर लें तो दोनों में क्या अंतर पाएंगे। मारूति वाले आदमी का काम पूरी तरह से निर्धारित है। हर रोज उसे गिन चुने काम पहले से निर्धारित प्रक्रिया से पूरे करने हैं। वहीं दूसरी तरफ इंफोसिस वाले आदमी को हर चार पाँच महीने में नए प्रोजेक्ट पर काम करना है। हर जगह कुछ न कुछ नया करना है। हो सकता है उसे नए प्रोग्राम लिखने हों और अच्छा प्रोग्राम लिखना व कविता लिखना बराबर ही है। हो सकता है उसे क्लाइंट के वातावरण के हिसाब से कुछ नया लगाना हो।

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पंकज नरूला

A Product Guy working in Cloud in particular SAP HANA Cloud Platform playing with Cloud Foundry + Subscription and Usage billing models

Product Management

San Francisco Bayarea