मेरे दोस्त गुरु का तीन बजे फोन आया कि गुरु देखने चलना है क्या? हम लोग काफी दिन से इसके विज्ञापन देख रहे थे व देखने का मन बना चुके थे कि भाई इसके लिए दस डॉलर खरचने ही हैं। बिना समीक्षाएं पढ़े देखने गए गुरु को। यहाँ बे-एरिया के ट्रैफिक के वजह से १५ मिनट लेट पहुँचे। पर गुरु से जितनी उम्मीदें थी उससे भी अच्छी निकली। गुरुकांत देसाई व सुजाता वाकई कमाल के किरदार बनाएं हैं। गुरु जिसने न सुनना नहीं सीखा। धंधे की इतनी समझ की सारी दुनिया से अलग जा सकने की कुवत। दुनिया सूत खरीद रही है तो हम केला सिल्क बनाएंगे। बनिया बुद्धि ऐसी कि आवाज भी बचा कर खर्चते हैं। रास्ते में सरकार के दकियानूसी कानून व लाईसेंस भी आएं तो सरकार से भी पंगा ले सकने का साहस। वहीं सुजाता हर कदम पर पति के साथ। सुःख दुःख हर कदम पर साथ साथ। समझ इतनी कि अगर मायके वाले गलत जाएं तो उन्हें गलत कहना। 

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सभी की तरह वसुधा व मैं फिल्मों के बहुत शौकीन हैं। ऐसा कम ही होता है कि हम लोग किसी फिल्म की समीक्षा के बिना देखने पहुंच जाते हैं। शाम को छःह बजे प्रोग्राम बना कि मंगल पांडे देखने चलते हैं। नाज पर देखा तो पता चला कि 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 हर घंटे पर एक शो चल रहा है। सात बजे के शो की ठान के निकल पड़े। सात वाला पूरा बिक चुका था इसलिए आठ बजे वाले की टिकटें ही मिल पाई। इतनी भीड़ देख कर मन प्रसन्न हुआ। लगता है बॉलीवुड के दिन फिर चुके हैं। ऐसा तो पहले नब्बे के दशकांत की डॉट कॉम क्रांति के समय पर होता था।

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हर बार कि तरह इस बार भी सारी दुनिया के लिखने के बाद अपनी ढपली बजा रहा हूँ। फिल्म तो दो हफ्ते पहले देख ली थी, समीक्षा लिखने अब बैठ रहा हूँ। स्वदेस से बहुत लोगों को बहुत तरह की उम्मीदें थी। सबसे ज्यादा कि देखें लगान का निर्देशक क्या नया करके दिखाता है। नया तो भैया उसने कर के दिखाया। पर शायद बॉक्स ऑफिस को पंसद न आए। पर मुझे बहुत पंसद आया। गर आप फिल्म मजे के लिए देखने जा रहे हो तो भाई न ही जाओ। पर यदि आप एक आप्रवासी भारतीय की अपनी जड़ों से जुड़ने की जद्दोजहद की कहानी, कुछ बेहतर अदाकारी और जिंदगी देखना चाहते हैं तो जरुर देखिए।

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कोहेनूर1 पर जब नाच की डीवीडी देखी तो पहली बार तो एक और बॉलीवुड फिल्म जानकर नजरअंदाज कर दिया। पर अगले सप्ताहंत पर जब देखा कि कोई भी नई फिल्म नहीं आई तो आया हूँ तो कुछ लेकर जाउंगा वाले अंदाज में नाच देखने के लिए उठा ली।

अगर नाहक नंगेपन को नजरअंदाज कर दिया जाए तो मुझे नाच काफी पंसद आई। देखकर लगा कोई तो है जो फिल्म को उसके मौलिक कारण की ओर लेकर जा रहा है – यानि कि कथा-कहानी सुनाना। राम गोपाल वर्मा की नाच फिल्मों में व्यावहारिकता एवं कला की कलाकार के अनुसार अभिव्यक्ति के संघर्ष की कहानी है।

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अभी अभी वीर-ज़ारा देख कर आ रहा हूँ। अब चोपड़ा जी की अभी अभी वीर-ज़ारा देख कर आ रहा हूँ। अब चोपड़ा जी की से निकली है तो अच्छी तो होगी ही और जाहिर है कि प्रेम-कथा भी है (जैसे की देस में और दूसरी फिल्में भी बनती ही हैं) यदि आपको दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे पंसद आई थी तो यह भी पंसद आयगी। अभी आप सोच रहे होंगे कि बाकि तो ठीक है पर प्रविष्टि के शीर्षक का क्या मतलब है। वो ऐसे कि शाहरुख खान एक जगह पर अपना परिचय देते हुए जैसा कि सेना में प्रचलित है अपना पद भी अपने नाम के साथ लगा कर बताते हैं स्कावार्डन लीडर वीर प्रताप सिंह। तो मुझे एक बात सूझी कि अपुन लोग तो कभी भी अपना परिचय ऐसे नहीं देते। कितना मजा आए आप किसी से मिलें और अपना परिचय दें मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर पंकज कुमार नरुला ।

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आज इतवार था और फिल्म देखना बनता था । लाला के पास ऐतबार पड़ी थी । Typical देसी movie थी । पहला half अपने को कोसते निकला । दूसरे हाफ में कुछ ठीक हुई । Movie ऐक पिता के अपनी जवान बेटी को एक Psychopath आशिक से बचाने के संघर्ष के बारे में है ।

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पंकज नरूला

A Product Guy working in Cloud in particular SAP HANA Cloud Platform playing with Cloud Foundry + Subscription and Usage billing models

Product Management

San Francisco Bayarea