मेरी कम्पनी ने काम की पांचवीं वर्षगांठ पर किन्डल नामक पढ़ने का जुगाड़ दिया। क्यूँकि मैं किताबें काफी पढ़ता हूँ मेरे लिए बढ़िया ईनाम था। जो लोग मुझे जानते हैं ये भी जानते होंगे कि मेरे दिमाग में क्या ख्याल आया होगा कि इस पर हिन्दी कैसी नजर आएगी।

सोचा कि क्या देखा जाए इस पर पहली बार। नासदिय सुक्त के बारे में सोचा, गीता के श्लोक मन में आए फिर याद आए फुरसतिया जी और बस फिर न सोचना पड़ा। पेशे खिदमत है शुक्ला जी की शुक्ले-खास-स्टाइल में किन्डल पर इ-स्याही में कविता