गांव और कैरियर
आज मीडिया युग में सृजन शिल्पी जी का पत्रकारों के लिए संदेश पढ़ा -पत्रकारों, आओ अब गांवों की ओर लौटें ! पर अभी तक गांव उपेक्षित हैं के बारे में वे लिखते हैं
कैरियर की दृष्टि से कोई सुप्रशिक्षित पत्रकार ग्रामीण पत्रकारिता को अपनी विशेषज्ञता का क्षेत्र बनाने के लिए ग्रामीण इलाक़ों में लंबे समय तक कार्य करने के लिए तैयार नहीं होता।
यह बात केवल सुप्रशिक्षित पत्रकार पर ही लागू नहीं होती बल्कि डाक्टर, इंजीनियर, बैंकर, वकील इत्यादि सभी पर लागू होती है। यानि जो पढ़ लिख जाता है वह गांव से दूर होता जाता है। इसमें शिक्षा का कोई कसूर नहीं है बल्कि अर्थशास्त्र की बात है। शहर आकार व जनसंख्या में बड़े होने के नाते ऐसे बहुत सी सुविधाएं देते हैं जिनकी हर आदमी को दरकार होती है। जैसे अच्छे स्कूल, अस्पताल, पूलिस सुरुक्षा, मनोरंजन व सबसे बड़े नौकरी के अवसर। यह अधिकतर सुविधाएं सार्वजनिक हैं व इनकी उपस्थिति के लिए जरुरी है कि इनका प्रयोग काफी लोग करें ताकि इनके ऊपर जो खर्चा आता है वह ज्यादा लोगों में बंटने के कारण प्रतिव्यक्ति खर्च कम हो।
तो गाँधी जी ने एक समय पर ग्राम स्वराज्य की परिकल्पना तो की थी पर वह माडल क्या आज के ग्लोबलाइजेशन युग, जहाँ पर हर चीज में कार्यक्षमता आगे है, में संभव है? क्या भारत को ग्राम प्रधान देश ही रहना चाहिए?