गुमानी गलीचा
अनूप जी उर्फ फुरसतिया जी समय समय पर फूल व फुलझड़ियाँ छोड़ते रहते हैं। ताजा अंक है कविता अनूप जी उर्फ फुरसतिया जी समय समय पर फूल व फुलझड़ियाँ छोड़ते रहते हैं। ताजा अंक है कविता जिसमें उनकी इनायत सभी चिट्ठाकारो पर हुई है। कविता का दूसरा पैरा बहुत ही जोरदार है जो की जरुरत की हिसाब से हर जगह फिट कर सकते हैं
**********हम तो उंनीदे थे बढ़िया लिखने के गुमानी-गलीचे पे
इस खुशनुमा नींद से झकझोर के जगाने की जरूरत क्या थी?
शुक्ला जी यूँ ही लिखते रहिए चाहे गुमानी नशे में ही सही।