एक बात अमरीका से
फुरसतिया फुरसत में कई बार कह चुके हैं कि ये प्रशांत महासागर पार वाले कुछ भी नहीं लिखते। रोजनामचा महाराज अटलांटिक पार वाले हैं व वे तो माशा अल्ला खदानों वगैरह में घूमते रहते हैं। इसलिए यह बात उन पर लागू नहीं होती। तो कुछ ऐसी बातों के बारे मे लिखता हूँ जो मेरे यहां बीते सात वर्षों में मुझे पसंद आई। बात बहुत सरल है पर बहुत दूर तक जाती है। इसके पीछे कुछ इतिहास भी छिपा है। उस बारें में अंत में लिखूंगा।
अमरीका में लोग अपने शहरों, गलियों, मुहल्लों के रख रखाव में पूरी रुचि लेते हैं या यूँ कहें की समाज ही कुछ इस तरीके से बना है। सरकार भी मन मर्जी से कहीं भी कुछ भी नहीं कर सकती। एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ। मैं जहाँ सैन होजे में रहता हूँ हवाई अड्डा घर के बहुत पास है। इस वजह से विमानों का दस बजे के बाद लैंड करना या सुबह छःह बजे से पहले उड़ान भरना निषिद्ध है। ऐसे पहले नहीं था पर नागरिकों की जागरुकता की वजह से ऐसा हुआ। बिल्कुल बगल के शहर सैंटा कलारा में आबादी के बीचो बीच एक मैदान पर अस्पताल बनने की बात शुरु हूई। अनगिनत टाउन-हाल मीटिंगों में नागरिकों ने ऐसा होने से उनके रोजमर्रा के होने वाली अड़चनों पर ध्यान दिला कर जब तक सहमति नहीं दिखाई सरकार ने अस्पताल बनाने की इजाजत नहीं दी। आखिर में एक उदाहरण और। सैने होजें से कुछ 24-25 किमी दूर फ्रीमांट शहर है। सैन होजे में कम्पनियां ज्यादा हैं फ्रीमांट में घर। तो रोज सुबह शाम दोनो शहरों की बीच में गाड़िया का जाम लग जाता है। सरकार ने कहा कि दोनों की बीच में कुछ पब्लिक ट्रांसपोर्ट का साधन होना चाहिए। कुछ दिल्ली मेट्रो जैसी बार्ट की लाइन डाली जानी चाहिए। काफी पैसा लगेगा। कैसे जुगाड़ें। एक तरीका है कि हर चीज पर लगने वाला टैक्स बढ़ा देते हैं। पर जनता को राजी भी तो होना चाहिए। तो अगले चुनाव के चुनाव पत्र में एक लाइन जोड़ दी जाती है व नागरिक बता सकते हैं कि वे ऐसा चाहते हैं कि नहीं। यानि शहर समाज में आपकी पूरी भागीदारी। यदि आप के पास समय हो तो यहाँ के नैशनल पब्लिक रेडियो पर हो रही बैगलोर लौटे भारतीयों की यह चर्चा जरुर पढ़ें या सुने।
इस बात का एक विपरीत पहलु भी है जिसका नाम है निम्बीइज्म - Not in my back yard. जब नागरिको को यह सुविधा मिलती है कि वे समुदाय से संबधित निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं तो वे कुछ इस प्रकार से करते हैं कि उन का प्रभुत्व बना रहे। फरज कीजिए की नगर की जनसंख्या बढ़ रही है। सरकार चाहती है कि नए मकान बनाए जाए। मेर पिछवाड़े के मैदान में एक मल्टी स्टोरी काम्पलेक्स की योजना बनाई जाती है। इससे मेरी कालोनी वालो पर फरक पड़ेगा की ट्रैफिक बढ़ेगा। यदि वह काम्पलेक्स कुछ घरों के पीछे बन रहा है तो उनकी कीमत कम हो सकती है। इन सबके चलते पहले से रह रहे नागरिक इन का विरोध करेंगे। खैर हर सिक्के को दो पहलु होते हैं।
मैंने शुरु में कहा था कि इस बात का कुछ इतिहास से भी लेना देना है चलिए वह बात करते हैं। बात है जिस तरह से अंग्रेजों ने दुनिया में अपनी कलोनियाँ बसाई थी (काम की टिप-दुनियां की बहुत सी बातों का लेना देना अंग्रेजों से होता है)। अंग्रेजों की कालोनियां दो तरह की होती थी एक वह जहां वे जा कर बसते थे, दूसरी वह जहां वे केवल लूट पाट मचाते य व्यापार करते थे। अमरीका उनके बसने वाली कालोनी था। इसलिए यहां का शासन तंत्र इस तरह से बना कि हमारा अपना समुदाय है इसे मिल कर चलाते हैं। भारत दूसरे पलड़े में था यानि लूटपाट वाली कॉलोनी। तो श