भारतीय शेयर बाजार की अंधाधूंध बढोत्तरी का एक बड़ा कारण है बाहर का पैसा। जब विदेशी निवेशको को अपने पैसी की अच्छी वसूली भारत में दिखती नजर आई तो काफी पैसा अपने यहाँ आने लगा। शायद जितना पिछले पूरे साल में आया था वह साल के पहले तीन महीनों मे ही आ चुका है। इसका मतलब यह नहीं कि अमरीका का ग्रेग, इंगलैंड का थॉमस व जर्मनी का इंगो बैठे हुए यह पैसा निवेश कर रहे हैं। यह पैसा होता है ग्रेग, थॉमस, व इंगो द्वारा निवेशित उनके म्यूचल फंडो का यानि कि वित्त संस्थानो का पैसा। आज की शेयर मार्किट हर जगह ऐसी है कि ज्यादा पैसा वित्त संस्थानों का ही होता है। इन संस्थानों में आई आई एम, हार्वड शिक्षित वित्त प्रबंधक होते हैं जिनका रात दिन का काम यही होता है कि कैसे इस पैसे को बढ़ाया जाए।

यह देख कर अकेला निवेशक सोच में पड़ सकता है कि ऐसे में क्या अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है। मेरे दिमाग में यह बात घूम रही थी। पर पिछले एक दिन के अंदर अंदर दो लोगों से एक ही विचार सुन चुका हूँ जिससे की थोड़ी तस्सली मिलती है। बात ऐसी है कि एक तो इन संस्थानों को थोड़ी अवधि में भी रिट्रन दिखानी ही दिखानी है नहीं तो कोई इन्हें पैसा नही देगा। एकल निवेशक को कोई हर महीने यह नहीं पूछता कि भैया आपका पिछले महीने का मुनाफा कितना था। दूसरी के अपने बड़े होने के कारण यह लोग छोटी कंपनियाँ नहीं देखते जो कि काफी मुनाफा दे सकती हैं। अब देखते हैं यह चना कब भाड़ फोड़ेगा।