मिर्ची सेठ
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पंकज नरूला

A Product Guy working in Cloud in particular SAP HANA Cloud Platform playing with Cloud Foundry + Subscription and Usage billing models
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अगस्त 11, 2006 in ऐसे ही
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पंकज नरूला

A Product Guy working in Cloud in particular SAP HANA Cloud Platform playing with Cloud Foundry + Subscription and Usage billing models

Product Management

San Francisco Bayarea
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एक टाईप व बालू फॉण्ट

Mar 3, 2018
इंटरनेट पर हिन्दी में लिखने की शुरुआत कुछ धक्का-स्टार्ट कही जा सकती है। लिखने के लिए सॉफ्टवेयर नहीं था, ब्राउज़र ढंग से हिन्दी नहीं दिखाते थे। कॉफी जुगाड़ लगा कर लिखा जाता था। मैं बात कर रहा हूं २००२-०३ की। आलोक जी ९-२-११ वालों ने अपने देवनागरी.नेट से बहुत लोगों को नेट पर हिन्दी में लिखना सिखाया। पहले ब्राउज़रों ने हिन्दी ठीक से दिखानी शुरु की। फिर धीरे धीरे विंडोज़ में हिन्दी चलनी शुरु हो गई। आई एम ई का चलना, मंगल नामक फांट का आना बड़ी बातें थी।

हरित क्रांति अमेरिका और मेक्सिको

Dec 12, 2016
सिलिकन वैली का ट्रैफ़िक काफ़ी ख़राब है। बीस मील का आफ़िस का रास्ता जो आधे घंटे में होना चाहिए घंटे सवा में ही हो पाता है। कुछ समय तक तो रेडियो सुन कर बिताया पर फिर उस से भी पक गए। तो फिर एक नया शग़ल निकाला। पाड्कॉस्ट सुनने का। मज़ेदार बात यह है की पाड्कॉस्ट वाले काफ़ी लोग पुराने चिट्ठाकार हैं। टाइलर कौवन ऐसे ही एक जग प्रसिद्ध चिट्ठाकार हैं जिनके पाड्कॉस्ट के बारें में पता चला। उन के दूसरे पाड्कॉस्ट में वह जेफ़री सैक्स नाम के अर्थशास्त्री को ले कर आए। उसी चर्चा में भारतीय हरित क्रांति की बात चली तो नई बात पता चली। भारतीय हरित क्रांति के मैक्सिको संबध के बारे में।

मिर्ची सेठ अब ह्यूगो व गिटहब पर

Dec 12, 2016
हिन्दी में लिॆखे बहुत दिन हो गए। अपने अंग्रेजी के चिट्ठे बीटा थॉट्स को उसकी नई होस्टिंग गिटहब मुफ्त वाली पर डालने के बाद सोचा की मिर्ची सेठ को भी बदला जाए। बात यह है कि अभी तक चिट्ठा बनाने के दो तरीके थे या तो wordpress.com या फिर blogspot.com जैसे वेबसाइट पर चिट्ठा बनाया जाए या फिर अपनी होस्टिंग ले कर उस पर वर्डप्रैस लगा कर बनाया जाए। पहला तरीका ज्यादा प्रसिद्ध है क्यूंकि एक तो मुफ्त में है दूसरा कुछ ज्यादा तकनीकी पंगे भी नहीं लेने पड़ते। अपनी होस्टिंग और वर्डप्रैस वाला तरीका कॉफी बढ़िया है लेकिन उसके लिए कुछ तकनीकी ज्ञान होना जरुरी है व होस्टिंग के पैसे भी लगते हैं।

हिन्दी कैसी दिखती है ई-स्याही में

Jun 6, 2013
मेरी कम्पनी ने काम की पांचवीं वर्षगांठ पर किन्डल नामक पढ़ने का जुगाड़ दिया। क्यूँकि मैं किताबें काफी पढ़ता हूँ मेरे लिए बढ़िया ईनाम था। जो लोग मुझे जानते हैं ये भी जानते होंगे कि मेरे दिमाग में क्या ख्याल आया होगा कि इस पर हिन्दी कैसी नजर आएगी। सोचा कि क्या देखा जाए इस पर पहली बार। नासदिय सुक्त के बारे में सोचा, गीता के श्लोक मन में आए फिर याद आए फुरसतिया जी और बस फिर न सोचना पड़ा। पेशे खिदमत है शुक्ला जी की शुक्ले-खास-स्टाइल में किन्डल पर इ-स्याही में कविता

भवरों के कालेज का प्रोफेसर

Aug 8, 2012
बहुत दिन से लिखे नहीं थे तो मन किया कि लिखते हैं। वैसे अभी भीआलस मार गए होते उ तो जाॅब बाबू रचित आई पैड बगल में पड़ा था कि शरमा के लिखने बैठ गए। अब लिखने तो बैठे हैं पर क्या लिखें? फ़िल्मों से बढ़िया क्या विषय हो सकता है। तो अभी थोड़े दिन पहले काॅकटेल देखी थी। उसका एक गाना बजने लगा भवरों के कालेज का प्रोफेसर हूँ बेबी

हिन्दी रशियन भाई भाई

Sep 9, 2009
सरकारी नीतियों की वजह से भारत व रशिया दोस्त रहे हैं इसके फायदे नुक्सान तो खैर बहुत बड़ा मुद्दा है। यहाँ मैं किसी और ही चीज की बात कर रहा हूँ। कहते हैं कि दुनिया में हर चीज बिक सकती है हर चीज का बाजार है। बचपन से यह देखा भी है। पूरानी अखबारें, किताबें, कपड़ें. जंग लगा लोहा इत्यादि। शहर में कचरा बटरोने वाले भी सभी ने देखे हैं। पर क्या फ्यूज हुए बल्बों की मारकिट हो सकती है यानि कि कहीं पर फ्युज हुए बल्ब भी बिकें। तो जनाब ऐसा रशिया में होता था।

दिमाग की पीछे की हलचल

Apr 4, 2009
बुधवार की शाम, शाम के आठ बजे हैं। पोर्टलैंड से घर की फ्लाईट में अभी 40 मिनट हैं बोर हो रहा हूँ चारों और थके यात्रीगण अपनी अपनी फ्लाईट की प्रतीक्षा कर रहें। खाली बैठे ख्याल आया कि कुछ ब्लागिया गिटपिट की जाए। कुछ दिन पहले मेरी पंसदीदा पुस्तक सिद्धार्थ तीसरी या चौथी बार सुनी थी। जब भी सिद्धार्थ सुनता हूँ कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है। आज कल जिस बात पर ज्ञानदत्त जी की तरह मानसिक हलचल चल रही है वह है आदमी के दिमाग मे चलते रहने वाली गुफ्तगू। बात है दूसरे से बढ़ कर दिखने दिखाने की। अगर मैं गाड़ी चला रहा हूँ तो मैं सब से अच्छा बाकी ऐवें ही हैं। अरे मैं इतनी पुस्तकें पढ़ता हूं आप तो बिल्कुल भी नहीं पढ़ते। अरे मेरी देखिए हम कितने अच्छे मां बाप हैं हमारा बेटा हमेंशा प्रथम आता है। अरे आप ने अभी तक टैक्स नहीं भरा हमने तो दो हफ्ते पहले ही भर दिया था। अच्छा आप इस बार छुट्टियों पर कहीं नहीं जा रहे हम लोग तो मांउट आबू कल ही हो कर आए।

काली लैला

Apr 4, 2009
जगजीत सिंह जी की एक गजल है छड़यां दी जून बुरी जोकी कुंवारो की जिंदगी ब्यान करती है। यू-टयूब पर फिर से सुनने का मौका मिला। पर गजल के शुरु का शेर इतना कत्ल था कि यहाँ लिख रहा हूं। संगीत मय सुनने के लिए यूटयूब है ही। किसे वल ऑखिया मजनू नूं, ओए तेरी लैला दिसदी काली वे मजनू मुड़ जवाब दित्ता ओ तेरी अक्ख न वेखण वाली ए

सुरेन्द्र मोहन पाठक अब अंग्रेजी में

Apr 4, 2009
लोजी पाठक साहब जिन्होंने शुरुआती दौर में जेम्स हेडली चेज के नावलों का हिन्दी अनुवाद किया था अब पूरा सर्कल कर चुके हैं। उनके बहुचर्चित पैंसठ लाख की डकैती का अंग्रेजी संस्करण आया है। सुदर्शन पुरोहित जोकि सॉफ्टवेयर में काम करते हैं ने अंग्रेजी अनुवाद किया है। नाम है “Sixty Five Lakhs Heist” ज्यादा पढ़ने के लिए मिंट पर यहाँ पढ़ें। एक तरह से तो अच्छा है कि अब चैनई, हैदराबाद व त्रिची में बैठे मानस भी पाठक साहब के पढ़ पाएंगे। पर सोचता हूँ कि क्या अनुवाद पाठक जी की पंजाबी मिश्रित शैली का मुकाबला कर पाएगा अभी रमाकांत का कॉफी को विस्की का तड़का लगा कर पीना या फिर विमल का “तेरा भाणा मिठ्ठा लागे” गुरबाणी याद करना इत्यादि। वैसे अंग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है पर किसी की शैली को अनुवाद करना भी टेढा काम है। यदि कोई ब्लॉग बंधू अंग्रेजी अनुवाद पढ़े तो जरुर बताएं।

यहाँ कितना अच्छा है

Oct 10, 2008
सुबह जब बिस्तर से निकलने में मुश्किल हो, तो अपने आप से कहो “ मुझे एक आदमी की तरह, काम पर जाना है। यदि मैं वही करने जा रहा हूँ जिस के लिए मेरा जन्म हूआ है – और जिस के लिए मैं इस दुनिया में लाया गया था तो मैं कैसे शिकायत कर सकता हूँ ? या फिर मैं इसी के लिए जन्मा था ? कम्बल के नीचे घुस कर मस्ती से सोने के लिए ?

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