मैं ब्लॉग एग्रीगेटर के रुप में मैं ब्लॉग एग्रीगेटर के रुप में का उपयोग करता हूँ। कारण बड़े सीधे से हैं एक तो यह कि कभी भी कहीँ भी अपने प्रिय चिट्ठों के लेखकों के मन की पढ़ सकता हूँ, दूसरा यह कि सुबह सुबह मेरे कम्पयूटर से एक साथ हजारों चिट्ठों को खींचने के लिए रिक्वेस्टस नहीं जाती। ब्लॉगलाइन्स में एक सुविधा है कि यदि आप को कोई प्रविष्टि पसंद आती है तो आप उसे चिन्हित कर भविष्य में पढ़ने के लिए रख सकते हैं अन्यथा एक बार पढ़ी गई प्रविष्टियाँ अगली बार देखने पर नहीं आती। पर मेरी यह प्रविष्टि ब्लॉगलाइन्स के सुविधाओं के बारे में न होकर उसमें मेरे द्मारा संचित सुमात्रा स्थित राजेश कुमार सिंह द्मारा लिखित कविता प्रविष्टि संकल्प के बारे में है। मुझे यह कविता इतनी पसंद है कि यहाँ फिर से झाप रहा हूँ, आशा है राजेश जी बुरा नहीं मानेंगे

हम जहाँ हैं,

वहीं से ,आगॆ बढ़ेंगे।

हैं अगर यदि भीड़ में भी , हम खड़े तो,

है यकीं कि, हम नहीं ,

पीछॆ हटेंगे।

देश के , बंजर समय के , बाँझपन में,

या कि , अपनी लालसाओं के,

अंधेरे सघन वन मॆं ,

पंथ , खुद अपना चुनेंगे ।

या , अगर हैं हम,

परिस्थितियों की तलहटी में,

तो ,

वहीं सॆ , बादलॊं कॆ रूप मॆं , ऊपर उठेंगे।

भाई वाकई इसे ही कहते हैं नेवर से डाई अंग्रेजी में। अपने भारतीय परिवेश पर यह कविता बहुत खरी है। भीड़ कहीं अपनी जनसंख्या व चीन से बढ़ती प्रतिस्पर्धा की ओर इशारा ही लगता है। पर बढ़िया तो सबसे पहली पंक्ति ही है हम जहाँ हैं, वहीं से, आगे बढ़ेंगे।

राजेश जी अनुगूँज १३ के आयोजक भी हैं। इसी सिलसिले में उनसे बात का मौका भी मिला। तेहरवीं अनुगूँज संगति की गति की अपनी प्रविष्टि भेजना न भूलें। अंतिम तिथि अक्षरग्राम पर नहीं है पर पंद्रह मान कर चलिए व जल्दी जल्दी भेजें।