कुछ समय पहले स्वामी जी ने बुल्ला की जाणा मैं कौन गाने से परिचित कराया था। गाने के बोल सूफी कवि बुल्ला शाह ने लिखे थे और आप सुनते हुए महसूस कर सकते हैं कि बुल्ला शाह आत्म परिचिय के लिए कितने आतुर हैं व कैसे कैसे सवाल मन में उठते हैं

ना मैं अन्दर वेद किताबां,

ना विच भन्गां न शराबां

ना विच रिन्दां मस्त खराबां

ना विच जागां ना विच सौण

ना मैं वेद ना कुरान पढने वाला

ना भांग ना शराब पीने वाला

ना मैं शराबीयों में मस्तवाला

ना जागों में ना सोने वाला

कुछ ऐसे ही सवाल शायद हर सदी में आदमी अपने आप से करता आ रहा है। तो आइए आप भी मेरे साथ इस प्रश्न पर कुछ घुटने खुजिया लें। सामान्यतः अपुन लोग अपने आप को किसी न किसी प्रसंग से पहचानते हैं। ऐसा करना है भी बहुत आसान। जैसे कि पंकज बाबू उर्फ मिर्ची सेठ नरुला खानदान से हैं व श्री ईश्वर दास के दूसरे बेटे हैं। यहाँ आप मेरा अपने पारिवारिक व्यव्साय मिर्ची व्यापार से जुड़ा होने का उदाहरण भी देख सकते हैं। अभी अगर हम अपना ध्यान थोड़ा पुराने समय की और डालें ज्यादा नहीं यही कोई चार पाँच हजार साल पहले तो आप कुछ ऐसे परिचय पाऐंगे – परम क्षत्रिय सूर्यवंशी दशरथ पुत्र मर्यादा पुरोषत्तम श्री राम चंद्र या फिर परम धनुर्धर कुंती पुत्र अर्जुन। तो आप देखेंगे कि दुनिया के लिए आप का परिवार और आप का पेशा ही आप के बारे में बताता है। कुछ ऐसा ही मैं अपने आप को SAP Consultant कह कर कह सकता हूँ।

पर क्या पेशा व परिवार बस यही है मेरी पहचान। अगर मेरे से मेरा पेशा छीन लिया जाए और मेरे से मेरा पारिवारिक नाम छीन लिया जाए को क्या मैं खत्म हो जाऊँगा। मुझे नहीं लगता। पारिवारिक नाम तो यहाँ अमरीका में मतलब नहीं रखता। शायद वसुधैव कुटुम्बकम् या ग्लोबलाईजेशन के जमाने में खानदान ज्यादा मायने नहीं रखता। परिवार बेशक आप को दुनिया में पैर जमाने में मदद कर सकता है पर एक आदमी की पहचान नहीं है। पेशा आदमी की बड़ी पहचान मानी जाती है और इससे बचना है भी बड़ी मुश्किल। अब आमिर खान को एक बेहतर अदाकार के अलावा कोई और क्या कहेगा। पर आप यदि मेरी भाषा पर ध्यान दें तो पाएंगे कि पेशा ज्यादातर लोगों में आप की पहचान है। यानि कि लोग आप को इस नाम से जानते हैं। आप अपने आप को किस शीर्षक से देखते हैं एक जुदा बात है।

अब अगर सचिन तेदंलकर से उसका बल्ला छीन लिया जाए तो क्या रह जाएगा। शायद दुनिया की नजरों में सचिन खत्म हो जाएगा। पर सचिन क्या सोचता है इस बारे में? अब अगर सचिन की अपनी नजरों में वह खत्म हो गया है तो सब खत्म और अगर वह कहता है कि बल्ला ही सब कुछ नहीं और भी बहुत कुछ है तो सचिन केवल बल्लेबाजी नहीं था। यहीँ हमें पहला संकेत मिलता है हमारे प्रश्न के उत्तर का। सचिन क्या सोचता है अपने बारे में यानि मैं क्या सोचता हूँ अपने बारे में।

यानि Cogito Ego Sum या फिर मैं सोचता हूँ इसीलिए मैं हूँ। मैं सोचता हूँ मैं कम्पयूटर के क्षेत्र में काम करना चाहता हूँ तो मैं इलेक्ट्रीक्ल पढ़ने के बावजूद भी कम्पयूटर में आ जाऊंगा। यही बात अहम् ब्रहमोस्मि के पीछे है। मैं दुनिया को किस नजर से देखता हूँ वही दुनिया है। मैं अपने आप को कैसे देखता हूँ वही मैं हूँ। और बुल्ला भी कविता के अंत में यही कहता है

अव्वल आखिर आप नु जाणां

ना कोइ दूजा होर पेहचाणां

मैंथों होर न कोइ सियाणा

मैं स्वयं ही अंत में सबसे बड़ा हूं

और दूजा ना कोई जाना

मुझसा स्याना कौन?

आखिर में यह जरुर कहना चाहूँगा कि अपने आप को देखना और सोचना कि मैं यह हूँ तभी कारगर है जब आप ने इस बात को समझने के लिए शिक्षा व वैसा बनने के लिए मेहनत या कर्म किया है। केवल भ्रम में रहने से कुछ नहीं होता।