किसी जमाने में बड़े दीदी सरिता मंगाया करते थे और मैं भी बड़े चाव से पढ़ा करता था। उस समय इस पत्रिका का स्तंभ हुआ करता था सरिता मुझे शिकायत है। शीर्षक से पता चलता है कि पाठक अपने आस पास की जिन चीजों से शिकायत करते हैं को इस स्तंभ के लिए भेजा करते थे। कुछ वैसे ही आज मेरा मन है और शिकायत करने का मन है। सिलीकन वैली या ये कहिए की जहाँ भी देसी बंधूओं की बिरादरी बड़ी है जैसी कि न्यू जर्सी, अटलांटा इत्यादि वहाँ पर भारत पैसा भेजने वाले संस्थानों के विज्ञापन लगभग एक ही तर्ज पर होते हैं। इन विज्ञापनों में सरासर मानवीय भावनाओं को भूनाने की होड़ होती है। जरा गौर फर्माइए

- एक विज्ञापन में बेटा घर फोन करता है तो पता चलता है कि टीवी खराब है दूसरे ही दृश्य में पैसा घर पहुँच गया और पिता जी को बेटे का फोन आने पर उससे बात करने की फुर्सत नहीं है

- बहन की शादी के बाद वह अपने घर से अभी नई दुल्हन के लिबास में ही बात कर रही है कि भैया ड्राफ्ट के लिए बहुत शुक्रिया व नए जीजा जी इस दौरान कैमकॉर्डर से जो कि बाहर से ही आया है इसको रिकार्ड कर रहे हैं

- माँ बाप नए घर में प्रवेश कर रहे हैं व पिता जी बेटे को शाबाशी दे रहे हैं

क्या आप सोचते हैं कि इन संस्थानों को आपके घर बार वालों की चिंता है। मेरे ख्याल से वे तो बस अपनी दलाली के पीछे हैं। एक बात तो है कि पिछले छह सात सालों में भारत पैसा भेजने वाले संस्थानों की संख्या में वृद्धि काफी हुई है। जब मैं आया था तो केवल एक ही तरीका था। ऊपर दिए गए तीन में से दो विज्ञापन इसी संस्थान के हैं। अब तो मैं बैठे बैठे कम से कम दस गिनवा सकता हूँ। शायद इसी बढ़ोतरी के कारण स्पर्धा बढ़ गई है व विज्ञापनों की भरमार हो गई है। पर फिर भी मुझे इस तरह से आम आदमी की भावनाओं का भूनाते देख कर कोफ्त सी होती है।

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