मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने
आज घूमते घूमते एक गजल बोलों के सजाल पर जा पहुँचा। काफी सुंदर गजलों का संग्रह था। संग्रह-कर्ता के बारे में जानने का प्रयास किया तो पता चला वह जया झा हैं जिन्होंने कुछ समय पहले ब्लॉगिंग पर छोटा सा शोध किया था और परिणाम भी घोषित हो चुके हैं। थोड़ा और घूमने पर उनका हिन्दी कविताओं का संग्रह भी पता चला। वहाँ पर दिनकर जी कविता चाँद और कवि पढ़ी। क्या कविता है। दिनकर जी कलम में जादू है। कविता में चांद आदमी का मजाक उड़ा रहा है कि आदमी क्यूँ इतना प्रयत्न करता है मैंने सबको समय के साथ साथ जाते देखा है। इस पर जवाब
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ।मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
दोनों चिट्ठे पढ़ने के बाद मन में ख्याल आया कि यह नारद में होने चाहिए। वहां देखा तो जीतू जी दोनों चिट्ठे पहले से ही नारद में डाल चुके हैं। धन्य हैं नारद। पर गर दोनों चिट्ठे नारद में हैं तो यह सारी प्रविष्टियाँ मिस कैसे हो गई।