मंगल पांडेसभी की तरह वसुधा व मैं फिल्मों के बहुत शौकीन हैं। ऐसा कम ही होता है कि हम लोग किसी फिल्म की समीक्षा के बिना देखने पहुंच जाते हैं। शाम को छःह बजे प्रोग्राम बना कि मंगल पांडे देखने चलते हैं। नाज पर देखा तो पता चला कि 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 हर घंटे पर एक शो चल रहा है। सात बजे के शो की ठान के निकल पड़े। सात वाला पूरा बिक चुका था इसलिए आठ बजे वाले की टिकटें ही मिल पाई। इतनी भीड़ देख कर मन प्रसन्न हुआ। लगता है बॉलीवुड के दिन फिर चुके हैं। ऐसा तो पहले नब्बे के दशकांत की डॉट कॉम क्रांति के समय पर होता था।

फिल्म का प्रारंभ होता है अतयंत ही सुन्दर गीत “मंगल मंगल, मंगल मंगल, मंगल मंगल हो”। हरदिन की शुरुआत ऐसी ही होनी चाहिए। मंगल पांडे की कहानियों में सुनी कथा के अलावा इस फिल्म में और भी बहुत कुछ है। ईस्ट इंडिया कम्पनी के बारे में पूछते हुए मंगल अपने दोस्त व आला ऑफिसर विलियम गॉरडन से पूछता है कि

मंगल:साहिब यह कंपनी क्या है ?

विलियम: तुम्हारी रामायण में रावण नाम का विलेन है जिस के दस सिर हैं। कम्पनी भी ऐसा ही लाखों सिरो वाला विलेन है जिस के सिर लालच की ग्लू से जुड़े है।

मंगल हो

कितनी कालजयी बात है। फिल्म के बारें कही गई बाकी की बातें आप तरुण जी निठल्ला चिंतन वाले की इस प्रविष्टि व दीवान साहिब की इस प्रविष्टि में पढ़ सकते हैं। मैं तरुण की कही गई लगभग हर बात से वाकिफ हूँ सिवाए संगीत के। मंगल हो गाने को छोड़ कर बाकी गाने सामान्य हैं। वैसे इस का एक कारण यह भी है कि लगान और दिल चाहता है जैसी फिल्मों के अति उत्तम संगीत के बाद हर फिल्म में वैसा ही सुनना चाहते हैं।

मंगल हो ।।

छवियां साभार: http://mangal-pandey.com