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“मेरा एक मित्र है दिनेश कपूर। मित्र ही कहूँगा। पहले छात्र था। अब बड़ा हो गया है। छात्र जब बड़े हो जाते हैं, तो मित्र हो जाते हैं। मुझे तो पहले भी ‘सर’ कहता था, अब भी वही कहता है, पर मेरी पत्नी को पहले वह ‘आंटी’ कहता था अब ‘भाभी’ कहता है। मानना पड़ेगा कि अब वह बच्चा नहीं रह गया है। मैंने अपने अनुभव से जाना है, जब लड़के ‘आंटी’ से ‘भाभी’ संबोधन पर आ जाते हैं, तो वे स्त्री के वय को कम बताकर उसे प्रसन्न नहीं कर रहे होते; वे समाज से अपने लिए एक व्यस्क सा सम्मान मांग रहे होते हैं। इस संदर्भ में लड़कियों के मनोविज्ञान के विषय में मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा।

तो दिनेश कपूर मेरा मित्र है। पढ़ता था को दिल्ली में रहता था। अब नौकरी के सिलसिले में कई तबादले भुगतकर अहमदाबाद पहुँच गया है। पर दिल्ली छूटती है क्या किसी से। गालिब से नहीं छूटी, तो यह तो दिनेश कपूर ही है। उसका दिल्ली आनाजाना भी लगा ही रहता है। नौकरी अहमदाबाद में है तो क्या हुआ मायका और ससुराल तो दिल्ली में ही है न। फिर मित्र-दोस्त, सखी-सहेलियाँ, पूर्व-प्रेमिकांए सब तो दिल्ली में ही हैं।”

पुस्तक मेरे प्रिय लेखक की है। देखें सुधीजन लेखक का नाम बूझ पाते हैं कि नहीं।