वैसे तो अनुनाद जी आयोजित अनुगूँज १२ का प्रसाद बंट चुका है पर अपुन भी अपनी खिचड़ी पका के ही मानेगें। आज मन में जो विचार आए पेल दिए। तो लीजिए हाजिर हैं दस विचार

अनुगूँज

१. अवगुण नाव के पेंदे में हुए छेद के समान है जो अंततः नाव की तरह आदमी को डुबो ही देता है।

२. न विषादे मनःकार्यम् विषादो दोष वतरः, विषोदो हन्ति पुरुषम् बालं क्रुद्ध इवोरगः – मन को विषाद ग्रस्त नहीं करना चाहिए (मतलब कि भाई टेंशन मत ले यार), विषाद में बहुत दोष होते हैं। विषाद से आदमी का नाश हो जाता जैसे कि क्या क्रुद्ध सांप बच्चे को नहीं काटता।

३. राक्षसों के साथ व्यवहार करते समय बहुत सावधानी बर्तनी चाहिए, अन्यथा आप भी वैसे हो जाते हो। फ्रेडरिक निची (अब तक छप्पन इसी सुभाषित से आरम्भ होती है)

४. आदमी को सिर मुंडवा कर, बीच बाजार में घड़ा फोड़कर, या अपने कपड़े फाड़ कर किसी न किसी तरह से प्रसिद्धि अवश्य पानी चाहिए – बड़ी बहन की एम ए संस्कृत पुस्तक से पुराना व्यंग्य

५. आदमी को अपनी उमर नम्रता से स्वीकार करनी चाहिए। (अमरीका में इस की बड़ी प्राबल्म है बुड्ढे षोडशियों के साथ घूम रहे होते हैं व बुड्ढियाँ फेस लिफ्ट व छातियाँ प्लास्टिक से फुलवा कर घूम रही होती हैं)

६. मजे करने व खुशी का अंतर आदमी को आते आते आता है। (अमरीका में साथ काम करती बंदी के शब्द हम लोग नए नए आए थे व हर हफ्ते के आखिर में कहीँ न कहीं भाग जाते थे। तो यह बंदी जो उमर में हम से बड़ी थी से हमने एक सोमवार पूछा कि आप इस हफ्ते कहाँ गई। तो एक बार उसने कहा कि मैं अब ज्यादा कहीं नहीं जाती। मैंने जवानी मे बड़े मजे किए हैं पर मैं अब अपने परिवार संग खुश हूँ)

७. दुनिया दिखावे से भी डरती है – चाणक्य

८. अहम् ब्रहमोस्मि

९. चांद की कामना जरुर करो पर वहाँ तक जाने के लिए सीढ़ी भी बनाने के लिए तैयार रहो।

१०. कोई भी संबन्ध शुरु से ही परिपूर्ण नहीं होता, आप किसी एक जगह से शुरु करते हो फिर परस्पर सौहार्द से ही उसे परिपूर्ण बनाते हो जो शादी करने वाले हैं उनके के लिए यह मेरे एक पुराने मैनेजर के कथन हैं जो उसने उस समय कहे थे जब मुझे शादी के लिए कन्या का चुनाव करना था। देखिए इस बात को कहे भी तीन बरस बीत गए।