सूरज देव सिंह जी की कविता बढते कदम बहुत ही अच्छी लगी। यहाँ अपनी सहूलियत के लिए सहेज रहा हूँ आशा है वह बुरा नहीं मानेंगे.

इन बढते हुये कदमो को न रोकना कभी

मुश्किलो को देख कर हिम्मत न छोडना कभी

लोग कहेगे बहुत कुछ सून के न बहकना कभी

रास्ते कठीन हो फिर भी मन्जिल से पहले न रुकना कभी

कठीन कुछ भी नही है, कह के असम्भव पीछे न हटना कभी

आसान हो जायेगी मंजिल कदम पहला तो बढाना कभी

आसमाँ आ जायेगा हाथ मे जी से हाथ को ऊपर उठाना कभी

कारवाँ बन ही जायेगा कदम अपना आगे बढाना कभी

-सूरज देव सिंह

ऐसा क्यों है कि हमें हमेंशा बढ़ना अच्छा लगता है। शेयर मार्कट भी उन्हें ही सराहती है जो भविष्य में उन्नति दिखाते हैं।