आप्रवासी मन का चैन
बाहर रहते हुए कभी कभी कुछ विचार आते हैं जो कि मन को सालते हैं । व्यक्तिगत स्तर पर घर संबधियों की चिंता, क्या मैं एक अच्छा भाई, बेटा साबित हो रहा हूँ इत्यादि। इस स्तर से उठते हुए राष्ट्रीय स्तर पर यहां रहते हुए मैं देश के लिए क्या कर रहा हूँ। खासकर जब आप जानते हैं कि आप आज जहाँ है वहां आप शिक्षा की वजह से ही हैं। शिक्षा के लिए तो देश का ऋणी ताजिंदगी रहना पड़ेगा। खासकर अतानू डे का हू एक्चुली पेड फॉर माई ऐजूकेशन(आखिर मेरी पढ़ाई के पैसे किसने दिए) पढ़ने के बाद। इस विचारावस्था से निकलने के दो उपाय जो हमेशा सोचता हूँ वे इस प्रकार हैं
- मैं एक सॉफ्टवेयर कन्सलटेंट हूँ। देश में रहता तो भी शायद किसी अमरीकी कम्पनी के लिए ही काम कर रहा होता। तो यहाँ और वहाँ काम करने में फर्क क्या है जब काम तो आखिरी में बाहर की कम्पनी के लिए ही करना है। यह जरुर मानता हूँ कि वहां रहते हुए खर्चा करता, इन्कम टैक्स देता। थोड़ा और उठें को कम्पनी भी खोल सकता था और दूसरे लोगों के लिए रोजगार पैदा करता। पहले मामले में जो कि व्यक्तिगत है में मेरे ख्याल से मेरे कहीं भी रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता जब दूसरे मामलें में जहाँ मैं कम्पनी खोल रहा हूँ अभी और चिंतन की जरुरत है । आने वाले दिनों में लिखूंगा। मेरा सोचने का रास्ता यही है कि गर कम्पनी खोलता तो भारत में ऑफिस जरुर होता।
दूसरा उपाय है जो कि मेरे मन को थोड़ा शीतल करता है वह है आप्रवासियों द्मारा देश वापिस पैसा भेजना। चाहे यह पैसा होता व्यक्तिगत स्तर पर ही है पर आता तो अपनी वित्त व्यवस्था में ही। इसके बारे में भी कभी कभी मन में संशा होती थी कि क्या हुआ जो हम यहाँ से पैसा भेजते हैं। पर आज सीपिया म्यूटनी ने एक लेख के बारे में लिखा जो कि न्यू इकॉन्मिस्ट में छपा था शीर्षक आप्रवासी मायने रखते हैं। वहीं से एक संक्षिप्ति
With the number of migrants worldwide now reaching almost 200 million, their productivity and earnings are a powerful force for poverty reduction. Remittances, in particular, are an important way out of extreme poverty for a large number of people. The challenge facing policymakers is to fully achieve the potential economic benefits of migration, while managing the associated social and political implications.
पर फिर भी इस पंछी को चैन तो वापिस जहाज पर जाकर ही आएगा। वह सुबह कभी तो आएगी।
अभी तो दादा बड़ा न भैया
सबसे बड़ा रुपइया
आप अगर बाहर रहते हैं व ऐसे विचार आप को तंग करते हैं तो आप मन को कैसे समझाते हैं या फिर आप के दिल को बहलाने को मिर्ची कौन सा ख्याल अच्छा है।