अरे भईया इ हमसे का भूल हो गई। ससुरे दिमाग का खाँजा ही घूम गया लगता है। कविता वाली अरे भईया इ हमसे का भूल हो गई। ससुरे दिमाग का खाँजा ही घूम गया लगता है। कविता वाली पर बहुत फंडे हो गए हैं। पहले अतुल की टिप्पणी को अल्का की टिप्पणी समझ कर कुछ कह दिया और सुबह उनसे माफी माँगनी पड़ी अभी शाम में आ के देखते हैं कि कविता की गलती जितेन्द्र ने नहीं शुक्ला जी पकड़ी थी। महफिल में बैठे होते और ऐसी गलती हो जाती तो दोस्त न छोड़ते। इसलिए अनूप मैं क्षमाप्रार्थी हूँ आगे से ऐसी भूल न होगी