ससुरे दुई बजे आ जात हैं
कुछ समय पहले ब्रिज जी ने कुछ समय पहले ब्रिज जी ने के बारे में लिखा और अपने पुस्ताकालय प्रेम से भी अवगत कराया। उनकी इस प्रविष्टि से बचपन की कुछ बातें यादें स्मरण हो आई। पुस्तकों से लगाव मुझे बचपन से हो गया था। मेरे बड़े दीदी ने शायद तीसरी कक्षा में मुझे मेरी पहली कामिक्स, अमर चित्रकथा प्रकाशन द्नारा प्रकाशित “चुहे से व्यापार” ला कर दी थी। बस वहीं से कॉमिक्सों की लत लग गई। अब जेब खर्ची से आदमी कितनी किताबें ले सकता है। दोस्तों के पास भी सीमित स्टॉक होता था। अम्बाला जैसे छोटे शहर में लाएब्रेरी कहाँ से लाते। फिर पता चला घर से 3-4 किलोमीटर दूर स्टेशन के पास एक लाएब्रेरी है जहाँ बच्चे जाकर कॉमिक्स पढ़ सकते हैं। गर्मियों में स्कूल 1:00 बजे तक होता था। घर आ कर रोटी खाना। और माँ के लाख मना करने पर भी तपती दोपहरों में हम लाएब्रेरी भाग जाना। वहाँ करीब 2:30-2:45 के आस पास पहुँच भी जाते थे। लाएब्रेरी के एक माली काका खोलते थे और हम बालकों को समय से पहले आया देख कर कहा करते थे “ससुरे दुई बजे आ जात हैं”।