कोहेनूर1 पर जब नाच की डीवीडी देखी तो पहली बार तो एक और बॉलीवुड फिल्म जानकर नजरअंदाज कर दिया। पर अगले सप्ताहंत पर जब देखा कि कोई भी नई फिल्म नहीं आई तो आया हूँ तो कुछ लेकर जाउंगा वाले अंदाज में नाच देखने के लिए उठा ली।

अगर नाहक नंगेपन को नजरअंदाज कर दिया जाए तो मुझे नाच काफी पंसद आई। देखकर लगा कोई तो है जो फिल्म को उसके मौलिक कारण की ओर लेकर जा रहा है – यानि कि कथा-कहानी सुनाना। राम गोपाल वर्मा की नाच फिल्मों में व्यावहारिकता एवं कला की कलाकार के अनुसार अभिव्यक्ति के संघर्ष की कहानी है।

अंतरा माली जो कि कला को कला के मायने से अभिव्यक्त करना चाहिए को मानने वाली संघर्षरत नृत्य निर्देशिका है। वह कुछ बन के दिखाने के लिए किसा का सहारा नहीं लेना चाहती और न ही अपने मुल्यों से बिदकना चाहती है । जबकि अभिषेक बच्चन बड़ा कलाकार बनने के लिए जो भी करना पड़ा करुँगा सरीखा नव अभिनेता है। बस इन्हीं दोनों के आस पास कही गई कहानी है नाच।

फिल्म में अंतरा माली का व्यक्तितव व सोचने का नज़रिया बहुत कुछ अयन रैंड के फांउटेनहैड के नायक की तरह है। नायक का जो कि आर्किटेक्ट है का मानना है कि हर इमारत का अपना एक मकसद होता है वैसे ही हर नाच एक खास वजह से होता है। नायक को पुराने घिसे पिटे तरीके जैसे ग्रीको रोमन मेहराब, खिड़कियाँ जो कि पुराने समय में ठीक रही होंगी बेतरतीब लगती हैं वैसे ही अंतरा माली को हिंदी गानों के नाच का एक ही फारमूला बुरा लगता है। फिल्म में एक जगह अंतरा अपने अंतर्मन की आग नाच के जरिए निकाल रही होती है और दूसरे सीन में अभिषेक एक बॉलीवुड का पेड़ों के चारों ओर घूमने वाला गाना गा रहा होता है। एक और जगह पर फिल्म के अंदर एक निर्देशक एक गाने की शुटिंग को देख कर कहता है कि सब सरकस लगता है। पर साथ ही बैठा सहायक कहता है कि दर्शकों को यही पंसद आता है। ऐसे ही और भी बहुत से दृश्य हैं जहां मौलिकता व व्यावहारिकता में संघर्ष दिखाया गया है।

ऐसा नहीं है कि फिल्म सारी की सारी अच्छी है। अंतरा माली को वर्मा जी ने नख से शिख तक परखा है। जबकि इसके बिना काम चल सकता था। अंतरा का नाच चीनी मार्शल आर्टस ज्यादा लगता है। पर फिर भी एक कहानी को कहने के लिए वर्मा जी के विभिन्न प्रयास जिसमें नाच भी शामिल है की सराहना करनी चाहिए।

[1] कोहेनूर मेरे यहाँ की डीवीडी किराए पर देने की दूकान है