देसी अनेक सवाल बस एक
लगता है बचपन में पंजाब केसरी पढ़ने का दिमाग पर काफी बुरा असर हो गया है। प्रविष्टियों के शीर्षक दिमाग से ऐसे निकलते हैं जैसे मैंने केसरी वालों के लेखकों की रोजी रोटी पर लात मारनी हो। अब देखिए न मुद्दे की बात से भी हट गया। तो जब से चौधरी साहिब कुवैत वाले जी का लगता है बचपन में पंजाब केसरी पढ़ने का दिमाग पर काफी बुरा असर हो गया है। प्रविष्टियों के शीर्षक दिमाग से ऐसे निकलते हैं जैसे मैंने केसरी वालों के लेखकों की रोजी रोटी पर लात मारनी हो। अब देखिए न मुद्दे की बात से भी हट गया। तो जब से चौधरी साहिब कुवैत वाले जी का चला है, उन्हीं के पन्ने पढ़ रहे हैं। रवि जी की तरह वे भी समकालीन मुद्दों पर लिखते हैं पर अपनी कलम कटारि कुवैत से चलाते हैं। उनके एक पन्ने सपने, संताप और सवाल जो कि किसी राजेश प्रियदर्शी का लेख था पढ़ा और जैसे अपने ही दिमाग से मुलाकात हो गई। सपना अच्छी नौकरी का संताप छोटा नागरिक होने का और डर बच्चों के बिगड़ने का पर ये सब कल सोचेगें। मौका मिले तो जरुर पढ़िएगा।