गुऑचा बस्ता यानि की खोया हुआ बस्ता मेरी दसवीं कक्षा में पंजाबी की कहानी थी। कहानी तो भूल चुकी है पर इतना याद है कि यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में थी जिसका लड़कपन का दोस्त बिछड़ गया होता है और वह उस खोए हुए दोस्त को गुऑचे बस्ते की संज्ञा देता है। दोस्तों से मुझे भी बड़ा लगाव है क्योंकि मेरा मानना है कि

यारां नाल बहारां, मेले मित्रां दे

मतलब दोस्तों से ही जिंदगी में बहार है। मैं अपने विद्यार्थी जीवन में होस्टलों में बहुत रहा हूँ आठवीं के बाद से पढ़ाई पूरी होने तक। तो लाजमी है कि दोस्तों की भरमार होगी। इनहीं में से एक बहुत जिगरी दोस्त जो की मेरी तरह होस्टल का कम्पयूटर बाबा भी था जिंदगी की भीड़ में कही खो गया था। हर बार [गुऑचा बस्ता यानि की खोया हुआ बस्ता मेरी दसवीं कक्षा में पंजाबी की कहानी थी। कहानी तो भूल चुकी है पर इतना याद है कि यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में थी जिसका लड़कपन का दोस्त बिछड़ गया होता है और वह उस खोए हुए दोस्त को गुऑचे बस्ते की संज्ञा देता है। दोस्तों से मुझे भी बड़ा लगाव है क्योंकि मेरा मानना है कि

यारां नाल बहारां, मेले मित्रां दे

मतलब दोस्तों से ही जिंदगी में बहार है। मैं अपने विद्यार्थी जीवन में होस्टलों में बहुत रहा हूँ आठवीं के बाद से पढ़ाई पूरी होने तक। तो लाजमी है कि दोस्तों की भरमार होगी। इनहीं में से एक बहुत जिगरी दोस्त जो की मेरी तरह होस्टल का कम्पयूटर बाबा भी था जिंदगी की भीड़ में कही खो गया था। हर बार](http://hindi.pnarula.com/akshargram/2004/06/04/54/) से पहले उस की याद आती। बहुत जगह पर खोजा गूगल भैया से भी पूछा। कुछ लिंक मिले। यहां से देस फोन मिलाया तो पता चला कि वे उन्हीं के हमनाम रिटायर्ड करनल साहिब हैं। चंडीगढ़ के लिनक्स यूजर ग्रुप पर भी पूछा तो पता चला कि वे [गुऑचा बस्ता यानि की खोया हुआ बस्ता मेरी दसवीं कक्षा में पंजाबी की कहानी थी। कहानी तो भूल चुकी है पर इतना याद है कि यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में थी जिसका लड़कपन का दोस्त बिछड़ गया होता है और वह उस खोए हुए दोस्त को गुऑचे बस्ते की संज्ञा देता है। दोस्तों से मुझे भी बड़ा लगाव है क्योंकि मेरा मानना है कि

यारां नाल बहारां, मेले मित्रां दे

मतलब दोस्तों से ही जिंदगी में बहार है। मैं अपने विद्यार्थी जीवन में होस्टलों में बहुत रहा हूँ आठवीं के बाद से पढ़ाई पूरी होने तक। तो लाजमी है कि दोस्तों की भरमार होगी। इनहीं में से एक बहुत जिगरी दोस्त जो की मेरी तरह होस्टल का कम्पयूटर बाबा भी था जिंदगी की भीड़ में कही खो गया था। हर बार [गुऑचा बस्ता यानि की खोया हुआ बस्ता मेरी दसवीं कक्षा में पंजाबी की कहानी थी। कहानी तो भूल चुकी है पर इतना याद है कि यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में थी जिसका लड़कपन का दोस्त बिछड़ गया होता है और वह उस खोए हुए दोस्त को गुऑचे बस्ते की संज्ञा देता है। दोस्तों से मुझे भी बड़ा लगाव है क्योंकि मेरा मानना है कि

यारां नाल बहारां, मेले मित्रां दे

मतलब दोस्तों से ही जिंदगी में बहार है। मैं अपने विद्यार्थी जीवन में होस्टलों में बहुत रहा हूँ आठवीं के बाद से पढ़ाई पूरी होने तक। तो लाजमी है कि दोस्तों की भरमार होगी। इनहीं में से एक बहुत जिगरी दोस्त जो की मेरी तरह होस्टल का कम्पयूटर बाबा भी था जिंदगी की भीड़ में कही खो गया था। हर बार](http://hindi.pnarula.com/akshargram/2004/06/04/54/) से पहले उस की याद आती। बहुत जगह पर खोजा गूगल भैया से भी पूछा। कुछ लिंक मिले। यहां से देस फोन मिलाया तो पता चला कि वे उन्हीं के हमनाम रिटायर्ड करनल साहिब हैं। चंडीगढ़ के लिनक्स यूजर ग्रुप पर भी पूछा तो पता चला कि वे](http://sushubh.net/archives/category/living-in-panchkula/) में एक कम्पयूटर कम्पनी खोले हैं। वहां फोन किया तो कोई जवाब नहीं। खैर इस बात को भी 2-3 साल गुजर गए। आज फिर से गूगल किया तो वही ढाक के तीन पात, लेकिन आज गूगल ग्रुप्स पर भी खोज की और लीजिए सरदार साहिब का नाम आ गया। नाम के नीचे कम्पनी का नाम भी था। फिर कम्पनी नाम पर गूगल किया तो पक्का हो गया कि अपने वाले सरदार जी ही हैं। अब उन्हें ईमेल भेजी हैं देखते हैं क्या होता है।